Wednesday, October 26, 2011

३५७८. हम यहाँ याद में तड़फड़ाते रहे

३५७८. हम यहाँ याद में तड़फड़ाते रहे

हम यहाँ याद में तड़फड़ाते रहे

तुम बहारों में मस्ती लुटाते रहे

दिन गुज़रते रहे अश्क थम न सके

आओगे तुम यही ख़्याल आते रहे

कोई होंगी तुम्हारी भी मज़बूरियाँ

सोच कर ग़म तुम्हारा भुलाते रहे

बेवफ़ाई तुम्हें रास यूँ आ गई

दाग नामे-वफ़ा पे लगाते रहे

हम ख़लिश राह तकते रहे रात दिन

झूठ तुम बस तसल्ली दिलाते रहे.

महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश

१३ अक्तूबर २०११

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