Wednesday, October 26, 2011

३५९८. दिल है बहुत नादान झिझकता ही रहता है

३५९८. दिल है बहुत नादान झिझकता ही रहता है

दिल है बहुत नादान झिझकता ही रहता है

नाज़ो-अदा-अंदाज़ से डरता ही रहता है

तोला हैं वो पल एक तो माशा हैं दूजे पल

नाराज़ कब हो जाएं डर लगता ही रहता है

किस चाल का मतलब है क्या जाने नहीं कोई

कैसे बचें ये फ़िक्र मन करता ही रहता है

जिससे लगाया दिल उसीने राखी भिजाई

वो वाकया माज़ी का उभरता ही रहता है

बेहतर है ख़लिश दिल से कह दें बैठ चैन से

उल्फ़त के बिना भी जहां चलता ही रहता है.

महेश चन्द्र गुप्त ख़लिश

२१ अक्तूबर २०११

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